ABOUT SUNSHINE


About Sunshine
Sunshine in a novel way turned into rainbow
And apparent now seven colors in luster grow
Awakened system in the garden flowers progress
Fresh is light spread beauty prevails therein yes
The speculation has simply deprived me of sleep
Develops sunshine relations with a fiery temper deep
That Divine Beauty appears new everyday, thou observe
Because of this fact daily new is sunshine in heart preserve
The joy of its intoxication downpour in shape of rain
As rejoices sunshine in the embrace of clouds again
Burns though my being yet I provide others shade
Dissolved in me the sunshine with coolness stayed
Come my dear as our love reached to hour circle
I see radiance in the atmosphere sun rays fill
Here is the manifestation of the face of sun
As its rays symbolize quest of enlightenment done
Nevertheless it possesses wine,colors and fragrance
Yet more it is the glaze of the face of spring hence
The small hour raised in me sweet sentiments at dawn
with the same shade of mood wake up sun rays yawn

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Translation as above
ये तर्ज़-ए-नौ है कौसेकजह बन गयी है धूप
जलवों के सात रंगों में ज़ाहिर हुई है धूप 

बेदार है निज़ाम सुए इर्तिका हैं गुल 
सारे चमन में हुस्न है ताज़ा खिली है धूप 

इस सोच ने ही मेरे पसीने छुड़ा दिए 
उस अतिशीं मिज़ाज से मिलने लगी है धूप 

 हर रोज़ उस हसीन की है शान ही नयी 
महसूस करके देखिये हर दिन नयी है धूप 

उसका सुरूर सूरत-ए-बारिश बरस गया 
आगोशे अब्र में जो मज़े ले रही है धूप 

खुद जल रहा हूँ साया फराहम किये हूँ मैं 
मिल कर मेरे वजूद से ठंडी हुई है धूप 

 आ जा हमारा इश्क है निस्फुन नहार पर 
सारे जहाँ में चारों तरफ भर गयी है धूप 

बस इससे ही तो शरहे रूखे आफताब है 
इर्फानो आगही की अलामत बनी है धूप 

 खुशबू शराब रंग से उसकी शिनाख्त है 
लेकिन रूखे बहार की ताबिंदगी है धूप 

जब सारी कायनात करे आपकी सना 
तफसील इस सना की है ये आपकी है धूप 

तुम शब् के साथ जश्न-ए-तमन्ना मनाओगे
बस इतनी बात सुनके ही कुम्भला गयी है धूप 

नर्मी पे है तो उसका तसव्वुर है नर्म छाओं
गर वो बिगड़ गया तो वही आदमी है धूप

इससे दिल-ए-सुहैल में अरमान जाग उठे 
जज्बों के साथ वक़्त-ए-सहर जाग उठी है धूप 
_______________________________________________सुहैल काकोरवी

कौसे कज़ह- इन्द्र धनुष, बेदार- जागना, निजाम- व्यवस्था, सुए इर्तिका- उन्नति की ओर, आतिशीं मिज़ाज- गर्म स्वाभाव, सुरूर- नशा, आगोशे अब्र- बदल का आलिंगन, फराहम- उपलब्ध, निस्फुन नहार- आधा दिन, शरहे रूखे आफताब- सूरज के मुखमंडल की व्याख्या, इर्फानो आगही- समझदारी और ज्ञान, शिनाख्त- पहचान, रूखे बहार की ताबिंदगी- ऋतु राज के मुखमंडल का प्रकाश, सना- तारीफ, तफसील- विस्तार



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