हमारे दिल में तू है रौशनी माँ,
हमारी रूह की ताबिंदगी माँ.
जो मुझमे हो गयी है दायमी माँ,
वो फरहत है तेरे आगोश की माँ.
तेरी ताज़ीम का आलम को दें दर्स,
वो चाहे हों नबी या हों वली माँ.
हमारी ज़िन्दगी में बेश कीमत,
अगर कुछ है तो है तेरी हँसी माँ.
तेरे क़दमों के नीचे कह के जन्नत,
ज़माने ने बड़ाई तुझको दी माँ.
तुझे सौपा गया है कार-ए-तखलीक,
तुझी से है बहार ज़िन्दगी माँ.
वही तो हुस्न-ए-खिदमत है इबादत,
जिसे महसूस करके खिल उठी माँ.
दिनों में तेरा चेहरा जैसे सूरज,
तो फिर रातों में तू है चांदनी माँ.
समझ लेते हैं अच्छा क्या बुरा क्या,
तुझी ने दी है हमको आगही माँ.
मुझे ग़म छू नहीं सकते यकीं है,
दुआ मुझको जो तेरी लग गयी माँ.
ज़माना लाख बदले कुछ भी होवे,
नहीं बदलेगी जो वो इक तू ही माँ.
लुटाती है मोहबात बेतहाशा,
मिसाली है तेरी दरिया दिली माँ.
तेरे दिल की तड़प का क्या बयां हो,
जो मुझको चोट थोड़ी सी लगी माँ.
मुझे हैं याद बेचैनी की रातें,
मुझे है याद अपनी जगती माँ.
वजूद अपना हुआ सैराब जिससे,
तू ही तो है वो पाकीज़ा नदी माँ.
किताबें लाख कोई कितनी पढ़ ले,
मगर दरकार तेरी रहबरी माँ.
'सुहैल' उससे है ठंडक दिल में अपने,
जो देती है हमेशा ताज़गी माँ.
_______________________सुहैल काकोरवी
ताबिंदगी= चमक, दायमी- सदा के लिए, ताजीम= सम्मान, दर्स= पाठ, तखलीक= निर्माण, कार= काम, हुस्न-ए-खिदमत= सेवा का सौंदर्य, आगही= चेतना, दरिया दिली= कृपा धार,
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