सब्ज़ी बिना पूड़ी - पूड़ी बिना सब्ज़ी
चन्द्र शेखर जी का था एक दोस्त जो था सरफिरा,
लालची था और वो बहुत शौक़ीन खाने का था
बेसबब पूड़ी खिलाने के लिए उसको कहा
था वो अड़ियल चन्द्र शेखर जी के पीछे पड़ गया
उसको टाला एक दिन बोले की है एकादशी
चुप हुआ वो सम्मानवश ये बात तो मज़हब की थी।
सिर्फ पूड़ी ले के ऑफिस चन्द्र शेखर आये आज
कुछ बताना चाहते थे क्या था पत्नी का मिजाज़
है मिज़ाज एक शब्द जिसके दो हैं मानी दोस्तों
एक है स्वाभाव एक है स्वस्थ अब आगे चलो -
आम पतियों की तरह पत्नी से वो मरऊब थे
वरना अपने चन्द्र शेखर आदमी तो खूब थे।
है बहुत खाने में पूड़ी और सब्जी का चलन
इसलिए सब्ज़ी बिना पूड़ी है बिन दूल्हा दुल्हन
जिससे वादा कर चुके थे सामने था वो खड़ा
उसकी आँखों में तकाज़े थे वो पीछे पड़ गया
उनके चेहरे पर बहुत गंभीरता देखी गयी
ये तो अफ़साना था क्यों पूड़ी थी और सब्ज़ी न थी।
उनकी गाडी की ज़रूरत पड़ गयी मेराज को,
ले गए कह कर वो गाडी चन्द्र शेखर खुश रहो
सोच थी कुछ और उनकी एक्शन कुछ और थे
साथ में था दोस्त चिपका और नीचे आ गए
एक पूड़ी की दुकान ऑफिस से थोड़ी दूर थी
ये तो एक संयोग था सब्ज़ी बिना पूड़ी मिली
जीत के अंदाज़ में देखा वो चेहरा दोस्त का
खाओ चलकर पूड़ियाँ शायद बहुत जल कर कहा
टल नहीं सकती थी उसके बाद लेकिन वो बला
अये तरुण जी कह के फस जाना इसी का नाम था
आये नीचे आ गयी आफत दिल ए मजबूर पर
पूड़ियाँ डिग्गी में थी गाडी थी कोसो दूर पर
- सुहैल ककोरवी
चन्द्र शेखर जी का था एक दोस्त जो था सरफिरा,
लालची था और वो बहुत शौक़ीन खाने का था
बेसबब पूड़ी खिलाने के लिए उसको कहा
था वो अड़ियल चन्द्र शेखर जी के पीछे पड़ गया
उसको टाला एक दिन बोले की है एकादशी
चुप हुआ वो सम्मानवश ये बात तो मज़हब की थी।
सिर्फ पूड़ी ले के ऑफिस चन्द्र शेखर आये आज
कुछ बताना चाहते थे क्या था पत्नी का मिजाज़
है मिज़ाज एक शब्द जिसके दो हैं मानी दोस्तों
एक है स्वाभाव एक है स्वस्थ अब आगे चलो -
आम पतियों की तरह पत्नी से वो मरऊब थे
वरना अपने चन्द्र शेखर आदमी तो खूब थे।
है बहुत खाने में पूड़ी और सब्जी का चलन
इसलिए सब्ज़ी बिना पूड़ी है बिन दूल्हा दुल्हन
जिससे वादा कर चुके थे सामने था वो खड़ा
उसकी आँखों में तकाज़े थे वो पीछे पड़ गया
उनके चेहरे पर बहुत गंभीरता देखी गयी
ये तो अफ़साना था क्यों पूड़ी थी और सब्ज़ी न थी।
उनकी गाडी की ज़रूरत पड़ गयी मेराज को,
ले गए कह कर वो गाडी चन्द्र शेखर खुश रहो
सोच थी कुछ और उनकी एक्शन कुछ और थे
साथ में था दोस्त चिपका और नीचे आ गए
एक पूड़ी की दुकान ऑफिस से थोड़ी दूर थी
ये तो एक संयोग था सब्ज़ी बिना पूड़ी मिली
जीत के अंदाज़ में देखा वो चेहरा दोस्त का
खाओ चलकर पूड़ियाँ शायद बहुत जल कर कहा
टल नहीं सकती थी उसके बाद लेकिन वो बला
अये तरुण जी कह के फस जाना इसी का नाम था
आये नीचे आ गयी आफत दिल ए मजबूर पर
पूड़ियाँ डिग्गी में थी गाडी थी कोसो दूर पर
- सुहैल ककोरवी
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