pahle vo mere pahlu me giraftar hua hai

ग़ज़ल


पहले मेरे पहलू में गिरफ्तार हुआ है,
हैरत नही फिर क्यों वो वफादार हुआ है.

उस चेहरे पे आँखों से खिला देता हूँ मै फूल.
वो चेहरा मुझे देख के गुलज़ार हुआ है.

 पहचान नहीं पता हूँ मै अपनी ही सूरत,
आइना भी उसका ही तरफदार हुआ है.

जन्नत की निगाहें मेरा मुह चूम रही हैं,
अपना मुझे उस हुस्न में दीदार हुआ है.

होश उड़ गए आगोश-ए-मोहब्बत में हमारे,
इस तरह इलाजे दिल-ए-बीमार हुआ है.

आँखों से इशारों से वफाओं से जफा से,
वो क़त्ल मुझे करने को तैयार हुआ है.

जो नींद का था वक़्त उसे भूल गया वो,
सूरज उतर आया जो वो बेदार हुआ है.

तुगयानिये दरिया-ए-मोहब्बत थी बहुत तेज़,
इससे तो वही सिर्फ वही पार हुआ है.

सब छोड़ के वो आ गया दुनिया में हमारी,
ये हुस्न-ए -मोहब्बत का चमत्कार हुआ है।

नश्तर वो लगता है 'सुहैल'  ऐसी अदा से,
जो ज़ख्म है वो उसका तलबगार हुआ है.





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